गणित सीखना किसी भाषा को सीखने की तरह है। जिस तरह बचपन में हम हिंदी या अपनी क्षेत्रीय भाषा को सीखते हैं, उसी तरह गणित को भी धीरे धीरे सीखा जाता है। पहले हम नंबर के बारे में जानते हैं, फिर उनका जोड़, घटाव, गुना, भाग फिर धीरे धीरे हम स्टेप बाई स्टेप आगे सीखते चले जाते हैं। कुछ बच्चों को गणित मुश्किल इसलिए लगता है कि वो इस विषय को रटने लगते हैं। गणित रटा नहीं जाता है बल्कि सीखा जाता है। बचपन में जब आप हिंदी सीख रहे थे तो क्या मम्मी, पापा, दादा, दादी रटे थे, या किसी वाक्य को रट लिए थे। जैसे कि मुझे खाना चाहिए। जब भी भूख लगे तो ये वाक्य बोलना है। नहीं, हमने सीखा था, हम इस वाक्य को कई तरीके से बोल सकते हैं। इसी तरह गणित को भी सीखने की कोशिश करिये, रटने की नहीं। पुरे गणित में कोई भी सूत्र (फार्मूला) रटना नहीं है बल्कि ये जानना है की ये सूत्र कहाँ से आया। तब हम धीरे धीरे सीखते चले जाएंगे। और गणित में मजा आने लगेगा। और सबसे इम्पोर्टेन्ट बात ये है कि इसमें वक्त लगता है। जिस तरह हिंदी सिखने में हमें कई साल लग गए थे उसी तरह गणित , हर दिन कुछ नया सीखिये। वक्त लगेगा, लेकिन एक बार आपको मजा आने लग गया तो, ……
इस सूत्र को यदि हमने रट लिया तो हो सकता है हम कुछ समय के लिए याद रख लें, बाद में भूल जाएंगे, लेकिन यदि हमने इसका कांसेप्ट जान किया की या कहाँ से आया है, कैसे बना है, तो चाह के भी नहीं भूल पाएंगे। ये तो एक छोटा सा उदाहरण था।
बच्चों गणित boaring नहीं बल्कि बहुत ही interesting है।
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